Saturday 10 May, 2008

भूतनाथ - भूत को देवदूत बनाता है आदमी

सिनेमा- भूतनाथ भूत को देवदूत बनाता है आदमी ... जी हाँ, बी.आर. चोपडा बैनर की फिल्म ‘भूतनाथ’ यही बताती है (इसलिए नाम देखकर इसे डरावनी वग़ैरह वाली फिल्म न समझें)। गोवा के एक भूत बँगले, जिसमें टैक्सी वाले व नौकर-चाकर तक नहीं आते, में रहने आये परिवार की माँ अंजलि शर्मा (जुही चावला) अपने बच्चे बंकू (अमन सिद्दीकी) को बताती है - ‘भूत-वूत कुछ नहीं होते, देवदूत (ऐंजिल) होते हैं’ (सारे माता-पिता, कृपया ध्यान दें)। और रात को जब सचमुच भूतनाथ (अमिताभ बच्चन) बनकर भूत आता है, तो उसे बच्चा देवदूत समझता है - डरता ही नहीं । वरन् ऐसे आदर, प्यार व मज़े से पेश आता है कि उसे सच ही देवदूत बनना पडता है, जो फिल्म में एक बेहतर इंसान सिद्ध होता है। याने फ़र्क़ आदमीयत का है - आदमी ही भूत भी बनता-बनाता है या भूत को देवदूत भी। फिर तो दोनो दोस्त बन जाते हैं और भूतनाथ का जादुई असर बंकू से मिलकर घर व स्कूल में खूब मज़े कराता है । यही मौज-मज़ा ही है तीन-चौथाई फिल्म, जिसके लिए ‘भूतनाथ’ सबसे पहले ‘बच्चों की फिल्म’ है - गर्मी की छुट्टियों की दावत (ट्रीट)। पर कहना होगा कि यह सबकुछ बचकाना भी है और कुछ बासी भी। गीत-संगीत भी महा बेरस.. जावेद अख़्तर तथा विशाल व शेखर ने क्या किया है, वही जानें। हाँ, एक गाने में अमिताभ बच्चन की आवाज उनके पिता बच्चनजी के काव्य-गायन की ख़नक की याद दिलाते हुए श्रवणीय बन पडी है। वरना ज़ाहिर है कि हम ऊबते हैं, लेकिन इस दौरान अमिताभ व उनके समक्ष अमन सिद्दीकी के अभिनय की समक्षता उल्लेखनीय है। दोनो के बडे-छोटे होने का अंतर तो ज़मीन-आसमान का है, पर अभिनय का रसायन (केमिस्ट्री) ऐसा बना है कि ‘को बड छोट कहत अपराधू’। और इसलिए मैं इस फिल्म का नायक तो अमन को ही कहूँगा - बिग बी तो महानायक हैं ही। सो, ‘भूतनाथ’ के असली खाद्य (रोटी-चावल) ये दोनो ही है, पर जुही चावला दाल की तरह सबमें मिली हैं तथा सदा की तरह खिली भी हैं। शाहरुख खान तो शुरू और अंत में शोरबे व मिष्ठान्न (सूप व स्वीट) की तरह हैं। चटनी-अँचार के लिए स्कूल में प्रिंसिपल सतीश शाह व घर में शराबी-पागल राजपाल यादव हैं, पर दोनो ही अपेक्षित स्वाद लाने में नाक़ामयाब हैं। इस सामग्री के साथ यदि आप बैठे रह गये, तो बच्चों की इस फिल्म के अंत के चौथाई भाग में बडों के लिए कुछ बडी बातें भी मिलेंगी - आज के लिए मौजूँ एवं मनोविज्ञान-सम्मत। तब समझ में आयेगा कि यह तत्त्व शुरू से ही पिरोया है, पर माले के धागे की तरह दिखता नहीं। इतने आयामों वाली इस फिल्म में ऐसा कौशल विवेक शर्मा के निर्देशन की खूबी है। कहानी (लॉर्ड ऑफ़ घोस्ट्स) की ताकत है, जिसमें भूतनाथ सचमुच भूतनॉट (भूत नहीं) है। वह तो उस बँगले के मालिक कैलाशनाथ की अतृप्त आत्मा है, जो बँगले में भटक रही है...। पोशाक व पात्रत्त्व में भी भूत का वैसा भान नहीं होता । क्या सोद्देश्य ? उनका बेटा अमेरिका पढने गया था, पर वहीं बस गया। अपनी मरती माँ को देखने तक नहीं आया। और एक बार आकर पिता से पूछे-बताये बिना बडे महँगे दामों वह बँगला बेचने चला। न बेचने लिए जो तर्क देते हैं कैलाशजी, उसे आज की नयी पीढी के हर युवक को सुनना चाहिए - भौतिक यथार्थ के समक्ष भावात्मक यथार्थ का ज़हीन पक्ष। 4-5 साल का पोता दादाजी से लिपट जाता है, पर बटे-बहू खींच कर लिए चल देते हैं - मुडकर देखते तक नहीं कि उन्हें रोकने के आवेग में कैलाशनाथजी गिर जाते हैं- खून से सने लावारिस-से मर जाते हैं। इसी अतृप्ति वश भूत बनकर इस बँगले की रक्षा में किसी को रहने नहीं देते थे, पर बंकू में उसी पोते को पाकर अब इन्हें जाने नहीं देते। अमेरिकन बेटा ग्राहक लाता है, तो तूफ़ान खडा कर देते हैं। यहीं खत्म होना था फिल्म को, पर एक और वर्ग को भुनाने की कोशिश में मन्दिर के पुजारी की सलाह पर कैलाशनाथ की आत्मा की मुक्ति के लिए बंकू के हाथों शाहरुख व जुही श्राद्ध कराते हैं। पहले इनकार के बाद अंत में बेटा विजय भी शामिल हो जाता है और इस भाग में विजय बने प्रियांशु चटर्जी ध्यान भी खींच पाते हैं। भूत से बना देवदूत अब मुक्ति के बाद सितारा देवदूत (स्टार ऐंजिल) बन जाता है और खल पात्र रहा विजय सद्पात्र बन जाता है । फिल्म को बच्चों की नज़र से देखने व बडों की दृष्टि से समझने के लिए सभी को देखनी ही चाहिए, पर धीरज धरे जिग़र के साथ,,,। - सत्यदेव त्रिपाठी

4 comments:

Unknown said...

आपने उत्सुकता बढ़ा दी है, अब तो जाकर देखना पड़ेगा…

Surakh said...

क्या वाकई

Anita kumar said...

लग रहा है कि फ़िल्म एक बार तो देखी जा सकती है।

Anonymous said...

?//////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????