Saturday 5 July, 2008

लव स्टोरी- 2050 हैरी बावेजा लिखित-निर्देशित फिल्म ‘लवस्टोरी-2050’ में सना (प्रियंका चोपडा) व करन (हरमन बावेजा) को देखते हुए आधी फिल्म तक यही लगा कि 2050 का प्यार भी वही पहली नज़र वाला ही होगा- बिना किसी कारण व तर्क के...। फिर लडकी के पास बडा अच्छा घर होगा, जहाँ वह अकेली रहती होगी...। परंतु वह घर 2050 में भी सिर्फ हॉय व बॉय करने के काम आयेगा…प्रेमी वहाँ सिर्फ फूल देगा और मिलने का समय तय करेगा...बाकी प्यार तो वे सडकों पर, पहाडों पर, बाज़ारों-मॉलों में गाते-नाचते-कूदते ही करेंगे। [इससे अच्छा उपयोग तो वैजयंती माला (के आदिवासी बाप) के घर का ‘मधुमती’ में दिलीपकुमार कर लेते थे।] बेचारे जावेद अख़्तर ही 2050 में भी गाने लिखेंगे...पर वे गद्यगीत होंगे, जिन्हें संगीतकार गवा देगा। हाँ, उसमें अनिवार्य रूप् से उछल-कूद के लिए जावेद जी गैप्स छोडेंगे और संगीतकार उन गैप्स पर अपने ख़म रख सकेगा...ठीक है कि एकाध गीत इसके अपवाद होंगे, जिसे 2050 का समय अवश्य माफ़ नहीं करेगा..। हाँ, 2050 में भी बिछडते हुए दोनो रोयेंगे। मैं यह सब देखकर पहले तो कम्बख़्त 2050 के समय को कोसने लगा...। पर फिर आश्वस्त हुआ कि चलो, बाग-बागीचों-नदियों-वादियों में आधे-पौना घंटे गा-नाच कर प्यार को प्रतिष्ठित करने की देवानन्द-राजकपूर युग की विरासत ज्यों की त्यों सुरक्षित तो है...ठीक है कि वादियां विदेशी (आस्ट्रेलियाई) हैं, क्योंकि देसी वाली बार-बार आकर बासी हो गयीं हैं...। तब के निर्देशक तरसते थे कि काश, अंग्रेजी फिल्मों की तरह छूट होती, तो एक चुम्बन से पाँच सेकेंड्स में यह काम हो जाता...। और आज तो छूट के बावजूद आधी-आधी फिल्म में वही हो रहा है, क्योंकि करें क्या...? तो हुआ न परम्परा-पालन ! इस रौ में लडकी की माँ (अर्चना पूरन सिंह) ज़रूर बडी मॉडर्न होगी कि होटेल में दोनो के लिए ऑर्डर देकर ख़ुद खिसक लेगी, पर वह 2050 में भी कुंडली जरूर मिलवायेगी...परम्परा...! और इसके लिए नायक के चाचा ज्योतिषी-वैज्ञानिक (वोमन ईरानी) मौजूद, पर वे असल में क्या कर रहे हैं, शायद वोमन को ही मालूम हो...। उनकी बनायी टाइम मशीन में बैठकर नायिका ‘2050 मुम्बई’ लिखती है, तब पता चलता है कि यह तो 2008 ही था...। तब तक नायिका एक आइस्क्रीम लिए रोड पार करते हुए मोटर से टकराती है व प्रेमी की बांहों में दम तोड देती है...ठडे-ठंडे होठों से एक किस देने का वायदा धरा का धरा रह जाता है - बेचारा हरमन !... पर किती शालीन है फिल्म !! अब मध्यांतर के बाद जाते हैं - 2050 की मुम्बई में, जहाँ सना का पुंनर्जन्म हो चुका है। वह एक सुपरस्टार डांसर है। शायद 2050 की मुम्बई में जवान ही पैदा होंगे- बच्चा पैदा करके कौन पाले-पोषे ? परिवार रोबोट हैं व आसमान में उडते वाहन हैं। पूरा परिवेश आसमानी रंग का है। शायद तकनीक के बल बनायी यही विज्ञान-कथा है...। लेकिन यहां भी फ़र्जी पहचान पत्र बनते हैं। विलेन होते हैं - नक़ाबपोश रोबोट । लेकिन अकेले करन सबकी ताकतों पर भारी पडता है - आख़िर हीरो है, फिर निर्माता-निर्देशक परिवार का राजकुमार भी...। काया भी हिरोइक और काम में भी दम...। प्रेमिका को खोजता ही नहीं, पहचनवा भी लेता है - डायरी तक ले जाना नहीं भूला था...। और प्रेमिका भी तो हसीन-दिलदार - पहली बार भायी प्रियंका ...। बडा मज़ा आया यह देखकर कि कभी पुराण-काल में पतिव्रता सावित्री अपने मरे पति को यमराज से माँग लायी थी- 2050 की मुम्बई में प्रेमिकाव्रती प्रेमी होंगे, जो दूसरे जनम से खींच लायेंगे प्रेमिका को...। जय हो टाइम मशीन की...जिसमें हिरोइन के घर के छोटे-छोटे बच्चे भी आ गये थे...। बच्चों को बोर करता होगा प्रेम व बडों को बोर करता है कथा विहीन फिल्म का बचकानापन...। इस तथ्य का पता चल गया होता, तो अपनी नयी कल्पना की कथा व कला को सँवार सकते थे हैरी बावेजा... -सत्यदेव त्रिपाठी