Sunday 29 June, 2008

समा गया थोडे-से प्यार में ज्यादा-सा जादू

‘थोडा मैजिक थोडा प्यार’ यूँ तो बच्चों की फिल्म है और बच्चों के लिए काफ़ी मज़ेदार भी है, पर उसकी शुरुआत होती है- फ़िल्म के नायक, बडे नामी बिजनेसमैन रनवीर तलवार (सैफ़ अली ख़ान) के गुस्से (न जाने क्यों?) व उसकी कार के हादसे से, जिसमें एक दम्पति की मृत्यु हो जाती है...। वैसे तो पूरा शहर, लेकिन ख़ास तौर पर पूरा मीडिया घोर शंका से आतुर है कि इस अमीरज़ादे को छोड देगा जज। पर वह तो अद्भुत फ़ैसला देता है- मृत दम्पति के चारो बच्चों को अपने घर में साथ रखकर श्री तलवार लालन-पालन करें...। और अब बच्चे तो बच्चे - वो भी फिल्म के बच्चे !! फिल्मी न होते, तो ऐसे दुखद समय में केस के दौरान अपने घर देखभाल के लिए आयी मौंसी-चाची-बुआ आदि को तूफ़ान-मस्ती करके भगा न देते... फ़िर माँ-बाप की मृत्यु के जिम्मेदार रनवीर के साथ क्या नहीं करेंगे...? उसे तंग करने की सारी बदमाशियों का नेतृत्व बडा बच्चा वशिष्ठ (अक्षत चोपडा) करता है...जिसमें इरादा तो बदले का है, पर तरीका बच्चा दर्शक वर्ग के मनोरंजन का ...। लेकिन यहाँ तक की तिहाई फिल्म में तो न प्यार है, न जादू...। वो आता है- भगवान (ऋषि कपूर) द्वारा इनमें मेल कराने के लिए गीता (रानी मुखर्जी) नाम से भेजी गयी परी के साथ...। सो, आगे की फिल्म परी-कथा है। सबकुछ जादू से होता है, जिसमें बच्चों के मुताबिक बहुत कुछ शामिल है...। इन तरीकों के परिणाम का तो पता था ही - सबकी दोस्ती व रानी से सैफ़ का प्यार...। सो, हुआ । और अंत के थोडे-से प्यार में समा गया - फिल्म के 55% हिस्से का यह जादू, 25 प्रतिशत शरारतें और थोडा-सा रोना-धोना भी...। इस प्यार पर कुर्बान होकर भगवान भी परी को धरती पर छोड देते हैं...सब खुश...। लेकिन इस बीच बच्चों के साथ आने वाले बडों के लिए कुछ है। सैफ़ की प्रेमिका के रूप में अमीषा पटेल रखी गयी है, जिसका अमीरी से बना गधापन (स्टुपिडिटी शालीन होता !) तो बच्चों का है, पर फिल्मकारों ने उसे महज कटि-वक्ष पर दो कसमसाते टुकडे (वही ‘टाइट टू पीस’) के साथ दर्शनीय बनाया है बडों के लिए। ज्यादा रसिकों के लिए उस पर नंगानाच (वही आइटम सांग) भी। दिल्ली-आधारित कहानी फिल्माने में विदेश हैं, और एक बार कहानी भी ‘लॉस एंजिल्स’ जाती है, जब सैफ़ के सौदे के बहाने बच्चों के साथ उसकी पूरी दोस्ती होती है। इनमें सधे कैमरे से कैद की गयीं ख़ूबसूरत दृश्यावलियां भी बडों को रुचेंगी। दो गीत तो ज़रूर सबको भायेंगे, पर असल में लुभायेगी बंगाली बाला रानी मुखर्जी ही - सैफ़ तो झींकते लगे इसमें मुझे। और सच का मज़ा तो बच्चों के सहज अभिनय का ही है - एक से बढकर एक। सब अपने काम व चरित्र की माँग पर सटीक...। और सब पर निर्देशक कुणाल कोहली की मनचाही पकड एकदम सही । किसी को राजेश खन्ना अभिनीत ‘दुश्मन’ की याद आ जाये, तो ताज्जुब न होगा... बच्चों के लिए तो उपहार है ही, बडे भी उनके साथ बोर न होंगे, वरन् फिल्म के आदर्शों-नसीहतों को समझाने के लिए उपयोगी ही होंगे... - सत्यदेव त्रिपाठी